‘‘शिक्षा में सम्पूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन के सन्दर्भ में विद्यालयों का मूल्यांकन - एक अध्ययन’’

मनीषा कौशलेश सस श्री सुनील दीक्षित

।ठैज्त्।ब्ज्
प्रस्तुत शोध में शोधकर्ता द्वारा ‘‘शिक्षा में संपूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन के संदर्भ में शालाओं का मूल्यांकन’’ का महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। इसमें रायगढ़ नगर के शासकीय एवं अशासकीय विद्यालय से 50-50 छात्र-छात्राओं का चयन किया गया है। इस अध्ययन से ैॅव्ज् अर्थात ैजतमदहजीए ूमंादमेेए व्चचंतजनदपजल तथा ज्ीतमंज द्वारा यह निष्कर्ष निकलता है कि इस चुनौती पर तत्काल ध्यान देकर विद्यालय की गुणवत्ता बढ़ायी जा सकती है।
प्रस्तावना ;प्दजतवकनबजपवदद्ध रू
प्राचीन काल में शिक्षा विद्यार्थियों को ऋषियों मनीषियों द्वारा गुरूकुलों या आश्रमों में प्रदान की जाती थी। जहां विद्यार्थी पूर्ण कालिक रूप से रहकर उपरोक्त गुणों का संवर्धन करता है। लेकिन वर्तमान समय में शिक्षा तथा शिक्षक के स्वरूप मानदण्डोें एवं विचारों में परिवर्तन हुआ है। प्राचीन परम्परागत आश्रमों एवं गुरूकुलों के स्वरूप में भी परिवर्तन हुआ है और आधुनिक व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों से भिन्न या विशिष्ट बनाये रखना चाहता है। जिसके लिये ये अपनी विशिष्टता के मानकों का निर्धारण करते हैं और अपने को अन्य से श्रेष्ठतम साबित करना चाहते हैं। यह विशिष्टता ही उनकी गुणवत्ता की सूचक होती है।

‘‘गुणवत्ता किसी उत्पाद अथवा सेवा के वे समग्र लक्षण एवं विशेषता होती है जो उसके बारे में वर्णित अथवा निहित गुणों को पूरा करने की क्षमता रखती है।’’ ब्रिटिश मानक संस्थान (1991) पूर्व अध्ययनों में ‘‘शिक्षा में गुणवत्ता प्रबंधन’’ के संदर्भ में अध्ययन किया गया है- ऐसे वातावरण का निर्माण जो हर विद्यार्थी के शारीरिक निर्माण की पुष्टि करे तथा पाठ्यचर्या का सामंजस्य हो। वायर (1996) उद्देश्यों का निर्धारण विशिष्ट व्यवहारिक नियमित लक्ष्यों में परिवर्तन करना- काकोर्ड। प्रत्येक समस्या को इस प्रकार समझें मानों उसे सुलझाने के अनेक समाधान मौजूद है- कैक तथा तीर्जे (1988) संगठनात्मक मूल्यांकन तथा उपचार के लिये प्रमुख गुणात्मक विधि है। प्रोफेसर एम. मुखोपाध्याय (1989)
उद्देश्य ;व्इरमबजपअमेद्ध रू
1. शिक्षा में सम्पूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन का अभिप्राय समझना।
2. सम्पूर्ण गुणवत्ता प्रबंधनों के घटकों की पहचान करना।
3. भारतीय संदर्भ में संपूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन लाने की प्रक्रियाओं को समझना।
मान्यताएं ;।ेेनउचजपवदेद्ध रू
1. शिक्षा में संपूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन जैसे नये विषय का पाठकों को परिचय प्राप्त होगा।
2. संपूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन की प्रक्रियाओं को अपनाकर संस्थाओं का मूल्यांकन किया जा सकता है। इसमें अपनी संस्था का मूल्यांकन करने वाले प्राचार्य लाभान्वित हो सकते हैं।
3. शिक्षा में संपूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन को क्रियान्वित करने की प्रक्रिया अपनाने को लोकप्रिय बनाया जा सकता है।
न्यादर्श एवं परिसीमन ;ैंउचसम - क्मसपउपजमेपवदद्ध रू
1. छ.ग. में रायगढ़ नगर के 3 शासकीय एवं 1 अशासकीय विद्यालयों का चयन किया गया है जिसमें 100 विद्यार्थियों का चयन कर न्यादर्श के रूप में लिया गया है।
2. इन विद्यालयों में अध्ययनरत कक्षा 11 वीं एवं 12 वीं स्तर के विद्यार्थियों को चुना गया है।
चरांक ;टंतपंइसमद्ध रू
स्वतंत्र चर -संस्थाओं की मूल्यांकन प्रोफाइल।
परतंत्र चर -मुखोपाध्याय मापनी से प्राप्त मूल्यांकन प्राप्तांक।
बाहय चर -शासकीय, अशासकीय विद्यालय, लिंग।
उपकरण ;ज्ववसेद्ध रू ‘‘मुखोपाध्याय सांस्थानिक विवरण प्रश्नावली ;डप्च्फद्ध ष्डनाीवचंकीलंलश्े प्देजपजनजपवदंस च्तवपिस फनमेजपवदंपतमष्
शोध परिणाम एवं निष्कर्ष ;त्मेनसज - पिदकपदहेद्ध रू
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नंदेली रायगढ़
मुखोपाध्याय सांस्थानिक विवरण प्रश्नावली पर उत्तरदाताओं के प्राप्तांकों का विश्लेषण
प्रश्न 1: मेरा विद्यालय मुझे भविष्य के लिये तैयार कर रहा है?
सारणी क्रमांक 01
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
75ः 16ः 9ः 0ः 0ः
प्रश्न 2:मुझे अपने विद्यालय पर गर्व है?
सारणी क्रमांक 02
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
78ः 22ः 0ः 0ः 0ः
प्रश्न 3:शिक्षक हमारा काफी ध्यान रखते हैं?
सारणी क्रमांक 03
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
50ः 35ः 6ः 6ः 3ः
प्रश्न 4: प्रधानाचार्य विद्यालय में काफी रूचि लेते हैं?
सारणी क्रमांक 04
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
56ः 16ः 9ः 13ः 6ः
प्रश्न 5:शिक्षक बहुत अच्छी तरह पढ़ाते हैं?
सारणी क्रमांक 05
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
56ः 28ः 13ः 3ः 0ः
प्रश्न 6:शिक्षक विद्यार्थियों को अंक देने में पक्षपात नहीं बरतते हैं?
सारणी क्रमांक 06
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
56ः 28ः 9ः 6ः 0ः
प्रश्न 7:हमारे विद्यालय में अच्छी सुविधाएॅ है?
सारणी क्रमांक 07
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
44ः 16ः 3ः 22ः 16ः
प्रश्न 8: सभी बच्चों को सहपाठ्यचर्या कार्य कलापों में हिस्सा लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है?
सारणी क्रमांक 08
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
78ः 10ः 6ः 3ः 3ः
प्रश्न 9: विद्यालय कड़ा अनुशासन पालन करता है?
सारणी क्रमांक 09
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
50ः 25ः 10ः 6ः 9ः
प्रश्न 10:विद्यालय अच्छे व्यवहार की प्रशंसा और सराहना करता है?
सारणी क्रमांक 10
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
63ः 13ः 13ः 9ः 2ः
संस्था के प्रोफाइल वक्र से यह स्पष्ट होता है कि इस संस्था की -
सामर्थ्य ;ैजतमदहजीद्ध -
सह-पाठ्यचर्या कार्यकलाप, शिक्षकों का प्रभावशाली शिक्षण कार्य तथा शिक्षकों का छात्रों के प्रति ध्यान, विद्यार्थियों का विद्यालय पर गर्व करना और विद्यार्थियों का यह मानना कि उनका विद्यालय उन्हें भविष्य के लिये तैयार कर रहा है। यह सभी इस संस्था की प्रमुख सामर्थ्य है।
संस्था की ‘‘कमजोरियॉं’’ ;ॅमंादमेेद्ध -
प्रधानाचार्य का विद्यालय में पर्याप्त रूचि न होना इस संस्था की कमजोरी है। प्रधानाचार्य विद्यालय में पर्याप्त रूचि नहीं लेते हैं तथा उनका व्यवहार शिक्षकों के प्रति मित्रवत तथा सौहाद्रपूर्ण नहीं है।
संस्था के लिये ‘‘अवसर’’ ;व्चचवतजनदपजलद्ध -
विद्यालय का अनुशासन तथा विद्यार्थियों के अच्छे व्यवहारों की प्रशंसा और सराहना इस संस्था का ‘‘अवसर’’ है।
विद्यार्थी यह मानते हैं कि उनके विद्यालय में शिक्षक अनुशासित रहने के लिये कहते हैं। उनकी अनुशासनहीनता पर उन्हें दण्ड देते हैं। विद्यार्थी शिक्षकों के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करते हैं।
शिक्षक विद्यार्थियों के एक निश्चित समय या प्रार्थना के बाद आने पर उन्हें दण्ड भी देते हैं। शिक्षक विद्यार्थियों में अच्छे कार्यों तथा उनके अच्छे आचरण, नियमित उपस्थिति और अध्ययन में लगनशीलता की प्रशंसा और सराहना करते हैं। इन ‘‘अवसरों’’ का लाभ उठाकर संस्था की गुणवत्ता बढ़ायी जा सकती है।
संस्था की ‘‘चुनौती’’ ;ज्ीतमंजद्ध -
विद्यालय की सुविधा इस संस्था की चुनौती है। विद्यालय में बाथरूम, टॉयलेट, पंखा, लाइट, फर्नीचर भी पर्याप्त व्यवस्था है परंतु पुस्तकालय में आवश्यकतानुसार और अधिक मात्रा में अच्छी पुस्तकें उपलब्ध नहीं है। प्रयोगशाला तो है परंतु आवश्यक उपकरणों की कमी है तथा आधुनिक दृश्य-श्रव्य सामाग्रियों का भी अभाव है। विद्यालय में सभी सुविधाओं की व्यवस्था करना अनिवार्य है।
इस चुनौती पर तत्काल ध्यान देकर विद्यालय की गुणवत्ता बढ़ायी जा सकती है।
मॉं सरेश्वरी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जूटमिल रायगढ़
मुखोपाध्याय सांस्थानिक विवरण प्रश्नावली पर उत्तरदाताओं के प्राप्तांकों का विश्लेषण-
प्रश्न 1: मेरा विद्यालय मुझे भविष्य के लिये तैयार कर रहा है?
सारणी क्रमांक 01
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
78ः 19ः 0ः 0ः 0ः
प्रश्न 2: मुझे अपने विद्यालय पर गर्व है?
सारणी क्रमांक 02
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
44ः 37ः 06ः 10ः 03ः
प्रश्न 3:शिक्षक हमारा काफी ध्यान रखते हैं?
सारणी क्रमांक 03
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
34ः 38ः 13ः 02ः 13ः
प्रश्न 4:प्रधानाचार्य विद्यालय में काफी रूचि लेते हैं?
सारणी क्रमांक 04
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
47ः 35ः 09ः 09ः 0ः
प्रश्न 5: शिक्षक बहुत अच्छी तरह पढ़ाते हैं?
सारणी क्रमांक 05
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
44ः 44ः 03ः 09ः 0ः
प्रश्न 6: शिक्षक विद्यार्थियों को अंक देने में पक्षपात नहीं बरतते हैं?
सारणी क्रमांक 06
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
16ः 47ः 0ः 22ः 16ः
प्रश्न 7:हमारे विद्यालय में अच्छी सुविधायें हैं?
सारणी क्रमांक 07
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
19ः 31ः 13ः 24ः 13ः
प्रश्न 8:सभी बच्चों को सहपाठ्यचर्या कार्यकलापों में हिस्सा लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है?
सारणी क्रमांक 08
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
47ः 31ः 09ः 04ः 09ः
प्रश्न 9:विद्यालय कड़ा अनुशासन पालन करता है?
सारणी क्रमांक 09
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
06ः 34ः 16ः 31ः 13ः
प्रश्न 10: विद्यालय अच्छे व्यवहार की प्रशंसा और सराहना करता है?
सारणी क्रमांक 10
पूर्णतः सहमत निश्चित असहमत पूर्णतः
सहमत नहीं असहमत
47ः 41ः 09ः 03ः 0ः
संस्था के प्रोफाइल वक्र से यह स्पष्ट होता है कि इस संस्था की -
सामर्थ्य ;ैजतमदहजीद्ध -
प्रधानाचार्य की विद्यालय में रूचि, शिक्षकों का विद्यार्थियों के प्रति ध्यान तथा विद्यार्थी के अच्छे व्यवहार की प्रशंसा करना, विद्यार्थियों का विद्यालय पर गर्व करना और यह मानना कि विद्यालय उनको भविष्य के लिये तैयार कर रहा है। इस संस्था की सामर्थ्य है।
प्रधानाचार्य शिक्षकों तथा छात्रों से वार्तालाप करते हैं तथा उनकी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करते हैं। शिक्षक विद्यार्थियों के अध्ययन संबंधी क्रियाकलापों, उनकी उपस्थिति आदि पर ध्यान देते हैं। शिक्षक विद्यार्थियों की विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने पर उन्हें प्रोत्साहित करते हैं।
संस्था की कमजोरी ;ॅमंादमेेद्ध -
शिक्षकों का छात्रों के प्रति ध्यान न देना तथा अंकों का वितरण में पक्षपात की भावना इस संस्था की कमजोरी है। शिक्षकों का छात्रों के प्रत्येक क्रियाकलाप में ध्यान नहीं रहता। वे छात्रों की अध्ययन संबंधी आदतों तथा अधिगम में आने वाली समस्याओं में ध्यान नहीं देते तथा विद्यार्थियों को ऐसा लगता है कि शिक्षक अंक देने में पक्षपात करते हैं।
संस्था की ‘‘अवसर’’ ;व्चचवतजनदपजलद्ध -
सह-पाठ्यचर्या कार्यकलाप इस संस्था के लिये अवसर है। शिक्षक सहपाठ्यचर्या कार्यकलापों को महत्वपूर्ण मानते हैं तथा विद्यार्थियों को विभिन्न क्रियाकलापों, संगोष्ठी, परिचर्चा, भ्रमण, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करते हैं। इन अवसरों का लाभ उठाकर संस्था की गुणवत्ता बढ़ायी जा सकती है।
संस्था की ‘‘चुनौती’’ ;ज्ीतमंजद्ध -
विद्यालय का अनुशासन तथा विद्यालय की सुविधाएॅं इस संस्था के लिये चुनौती है।
शिक्षक केवल शिक्षण कार्य पर ही जोर देते है तथा उनमें आत्म अनुशासन, आत्मसंयम तथा सदाचार जैसी भावनाओं का विकास नहीं करते हैं। विद्यालय में सुविधाओं का भी अभाव है। विद्यालय में बाथरूम, फर्नीचर, पंखा, लाईट खेल का मैदान तो है परंतु पुस्तकालय में पर्याप्त और अच्छी पुस्तकों का अभाव है। आधुनिक शिक्षण सहायक सामाग्रियों का भी अभाव है। इन चुनौतियों पर तत्काल ध्यान देकर विद्यालय की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है।
संदर्भ गं्रथ

(References)
1. Boyer, L.E. (1996), 5 Priotites far quality Schools, Education Digert, 62(1)
2. Chaffe, E.E. and Tirney (1998), W.G. Collegiate culture and Leadership strategies, Newyark : MC millan.
3. Juran, J. (1989), Leadership for quality : An Executive Handbook, New yark; free press.
4. Mukhopadhyay Marmar (1989), Distance Education; A SWOT Analysis, in Mukhopadhyay, Marma (ed), Educational Technology : year book 1988, New Delhi : AIAET.
5. Shejwalkar, P.C. (1991), Total quality Management in Higher Edy\ucation, New Direction far Institutional Research, 71.
6. yadav, S. P. (2010), shikcha me sampurna gudvatta prabandhan ke sandarbh me vidyalayo ka mulyankan.

खिलाड़ी और गैर खिलाड़ी छात्रों के अंतर्मुखी एवं बहिर्मुखी व्यक्तित्व का तुलनात्मक अध्ययन
स डॉ.सुश्री पद्मा अग्रवाल सस दुर्गेष पटेल

ख् मावना जीवन को सुंदर और सुखमय बनाने के लिये षिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। व्यक्तित्व व्यक्ति की संज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक एवं दैहिक विषेषताओं का एक ऐसा सुव्यवस्थित संगठन है जिस रूप में वह अन्य व्यक्तियों से स्वयं स्पष्टतः प्रस्तुत करता है। खेलना बालकों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। बालक के शारीरिक और मानसिक विकास के लिये खेल एक मात्र अचूक साधन है। खेल के द्वारा ही बालक के स्वभाव का भली-भांति से अध्ययन किया जा सकता है। खेल द्वारा मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है। खेल बालक के अंतर्मुखी तथा बहिर्मुखी दोनों ही पक्षों का समान विकास करता है। खेल जहाँ बालक के अंदर आत्मसम्मान, कल्पनाषक्ति, स्वालंबन पैदा कर अंतःषक्ति को बल प्रदान करता है। वही पुष्ट शरीर, तीव्र ज्ञानेंद्रियाँ,आनंद, सामाजिक सम्मान से अभिभूत भी करता है। खेल बालक के मन एवं शरीर को शुद्धता प्रदान कर शक्ति देता है। खेलों का षिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है। प्रस्तुत शोध में न्यादर्ष के रूप में जांजगीर-चांपा क्षेत्र में स्थित महाविद्यालयों में अध्ययनरत् 120 विद्यार्थियों का चयन यादृच्छिक प्रतिचयन विधि से किया। इसमें 60 खिलाड़ी एवं 60 गैर खिलाड़ी छात्रों का चयन किया गया। शोधकर्ता द्वारा खिलाड़ी व गैर खिलाड़ी छात्रों के अंतर्मुखी व बहिर्मुखी व्यक्तित्व प्रवृत्ति का तुलनात्मक मापन करने के लिये डॉ.यषवीर सिंह तथा डॉ. एच.एम.सिंह द्वारा निर्मित प्रमाणित व वैद्य उपकरण का प्रयोग किया है। ,


भूमिका
आज के वातावरण में सामंजस्य स्थापित करने के लिये षिक्षा के साथ-साथ शारीरिक व खेल षिक्षा महत्वपूर्ण सहयोग देती है। खेल षिक्षा का क्षेत्र काफी विस्तृत है। कार्य प्रणाली और विषय वस्तु काफी विकसित होने के कारण आज छात्र षिक्षा के क्षेत्र में अत्याधिक ज्ञान अर्जन करने में सक्षम है और छात्र खिलाड़ी इस षिक्षा प्रणाली से संतुष्ठ है और षिक्षा छात्र के साथ-साथ समाज का भी विकास करती है।
व्यक्तित्व
व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी के परसेनाल्टी ;च्मतेवदंसपजलद्ध शब्द का पर्याय है, जो कि लैटिन भाषा के परसोना ;च्मतेवदंद्ध शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ वेष बदलने के लिये प्रयोग किये गये मुखौटे से था।
आलपोर्ट के अनुसार ”प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व एक दूसरे से भिन्न होता है क्योंकि प्रत्येक प्राणी अपने जन्म से ही विषेष शक्तियों को लेकर जन्म लेता है। ये विषेषताऐं उसको माता-पिता के पूर्वजों से हस्तांतरित की गयी होती है। अतः यह स्पष्ट है कि सभी छात्र एक दूसरे से भिन्न होते हैं।
बर्हिमुखी व्यक्तित्व:-
बर्हिमुखी व्यक्तित्व से जुंग का तात्पर्य ऐसे व्यक्तित्व से है जिसमें सामाजिक वातावरण में अधिक रूचि रखने की प्रवृत्ति होती है। फलस्वरूप व्यक्ति संतुष्ट, उदार तथा सदैव दूसरे की सहायता करने के लिये तथा उनके सुख-दुःख बांटने के लिये तत्पर रहता है। नेता, राजनीतिज्ञ, समाजसेवी, अभिनेता आदि इस प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं जिन्हें सामाजिक जीवन में खुलकर भाग लेना पड़ता है और उनका व्यक्तित्व इस कारण खुला हुआ होता है।
अंतर्मुखी व्यक्तित्व:-
ऐसे व्यक्ति आत्मकेंद्रित तथा एकांतप्रिय होते हैं। ये प्रायः आदर्षवादी तथा भविष्य में सोच-विचार करने वाले होते हैं। वे अपनी ही कल्पनाओं और विचारों में खोये रहते हैं। सामाजिक वातावरण की अपेक्षा प्राकृतिक वातावरण में इनकी रूचि अधिक होती है। यह सोच समझकर निर्णय लेते हैं। निर्णय लेने में यह जल्दबाजी नहीं करते हैं। अंतर्मुखी आत्मकेंद्रित होते हैं। स्किनर के अनुसार ”आज हमारा यह विचार है कि व्यक्तिगत भिन्नताओं में संपूर्ण व्यक्तित्व का कोई भी ऐसा पहलू सम्मिलित हो सकता है जिसका माप किया जा सकता है।“
वर्तमान परिवेेष में षिक्षा के साथ-साथ खेल षिक्षा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है
जो विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करता है। वह केवल षिक्षक के दृष्टिकोण से ही नहीं वरन संपूर्ण शाला के वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। इसलिये आज षिक्षा में खेल व शारीरिक षिक्षा का होना अत्यंत महत्व रखता है। इसका प्रभाव षिक्षक व छात्रों के भविष्य को सँवारने में बाधा उत्पन्न करता है जिससे समाज व राष्ट्र का शैक्षणिक स्तर गिरता जायेगा।
अठवाल एच.एस. (2008-09) ने खिलाड़ी और गैर खिलाड़ी छात्राओं के
अंतर्मुखी और बहिर्मुखी व्यक्तित्व प्रवृति का तुलनात्मक अध्ययन किया। इसके लिये
उन्होंने अखिल भारतीय अंतरविष्वविद्यालय एथलेटिक्स प्रतियोगिता का वर्ष 2008-09 में भाग लेने वाले कुल 50 खिलाड़ी छात्राओं का चयन किया तथा शासकीय कन्या महाविद्यालय रीवा में अध्ययनरत कुल 50 छात्राओं को गैर खिलाड़ी छात्रों के रूप में चुना गया तथा उन्होंने यह निष्कर्ष निकाल कि आमतौर पर छात्राओं में अंतर्मुखी प्रवृत्ति पाई जाती है।
आधुनिक समाज में षिक्षा व खेल षिक्षा का अर्थ अत्यंत विस्तृत और व्यापक हो गया है। षिक्षण द्वारा बालक को ज्ञान प्रदान किया जाता है। तथा खेल द्वारा बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकस होता है। बालक को कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है अर्थात् आधुनिक युग में षिक्षण प्रक्रिया बाल केंद्रित है जिसमें बालक की संतुष्टी व व्यक्तित्व की ओर ध्यान दिया जाता है अर्थात् खेल षिक्षा, बालकांे की रूचि, पसंद, क्षमता, उनकी स्वयं की योग्यता, व्यवहार, पुस्तकालय, प्रधानाध्यापक का व्यवहार आदि का छात्रों में प्रभाव डालता है।
माइकल ब्रो (1998) ने विद्यालय में खेलने वाले खिलाड़ी और न खेलने वाले
खिलाड़ियों के व्यक्तित्व का तुलनात्मक अध्ययन किया तथा यह निष्कर्ष निकाला कि खिलाड़ी विद्यार्थी में न खेलने वाले विद्यार्थी की अपेक्षा उसका व्यक्तित्व अधिक प्रखर व उच्च रहता है।
उद्देष्य
स खिलाड़ी तथा गैर खिलाड़ी छात्रों की बहिर्मुखी व्यक्तित्व की पहचान करना।
स खिलाड़ी तथा गैर खिलाड़ी छात्रों की अंतर्मुखी व्यक्तित्व की पहचान करना।
स खिलाड़ी तथा गैर खिलाड़ी छात्रों की प्रतिक्रियाओं में भिन्नता की पहचान करना।
परिकल्पना
भ्1 ”खिलाड़ी छात्रों में गैर खिलाड़ी की अपेक्षा बहिर्मुखी प्रवृत्ति अधिक पाई जायेगी।“
भ्2 ”गैर खिलाड़ी छात्रों में खिलाड़ी की अपेक्षा अंतर्मुखी प्रवृत्ति अधिक पाई जायेगी।“
भ्3 ”खिलाड़ी छात्रों और गैर खिलाड़ी छात्रों के बीच व्यक्तित्व मापनी पर प्राप्त प्रतिक्रियाओं में सार्थक भिन्नता पाई जायेगी।“
स न्यादर्ष
जांजगीर-चांपा क्षेत्र में स्थित महाविद्यालयों में अध्ययनरत् 120 विद्यार्थियों का चयन यादृच्छिक प्रतिचयन विधि से किया। इसमें 60 खिलाड़ी एवं 60 गैर खिलाड़ी छात्रों का चयन किया गया।
स उपकरण
शोधकर्ता द्वारा खिलाड़ी व गैर खिलाड़ी छात्रों के अंतर्मुखी व बहिर्मुखी व्यक्तित्व प्रवृत्ति का तुलनात्मक मापन करने के लिये डॉ.यषवीर सिंह तथा डॉ. एच.एम.सिंह द्वारा निर्मित प्रमाणित व वैद्य उपकरण का प्रयोग किया है।
स प्रदत्तों का विष्लेषण
सारणी क्रमांक 1
खिलाड़ी छात्रों और गैर खिलाड़ी छात्रों की बहिर्मुखी प्रवृति का मध्यमान पर आधारित तुलनात्मक सांख्यिकीय विवरण
तुलनात्मक प्रदत्तों की व्यक्तित्व के मध्यमान
समूह संख्या आधार पर
चयनित छात्र
खिलाड़ी 60 51 35.0
विद्यार्थी
गैर 60 12 20.8 खिलाड़ी
विद्यार्थी
सारणी क्रमांक 2
खिलाड़ी छात्रों और गैर खिलाड़ी छात्रों की अंतर्मुखी प्रवृति का मध्यमान पर आधारित तुलनात्मक सांख्यिकीय विवरण
तुलनात्मक प्रदत्तों की व्यक्तित्व के मध्यमान
समूह संख्या आधार पर
चयनित छात्र
खिलाड़ी 60 09 19.28
विद्यार्थी
गैर 60 48 24.6 खिलाड़ी
विद्यार्थी
सारणी क्रमांक 3
खिलाड़ी छात्रों एवं गैर खिलाड़ी छात्रों की व्यक्तित्व का मध्यमान, प्रमाणिक विचलन एवं टी-मूल्य पर अधारित सांख्यिकीय विवरण
तुलनात्मक प्रदत्तों मध्यमान प्रामाणिक टी-
समूह की विचलन मूल्य
संख्या
खिलाड़ी 60 54.3 10.92
विद्यार्थी
4.8
गैर 60 45.4 9.22 खिलाड़ी
विद्यार्थी
कित्र 118 चझ 0ण्05 सार्थक अंतर पाया गया
परिणाम एवं निष्कर्ष
सारणी क्रमांक 1 के परिणाम दर्षाते हैं कि खिलाड़ी छात्रों के प्राप्तांकों का मध्यमान 35.0 है जो कि गैर खिलाड़ी छात्रों के प्राप्तांकों के मध्यमान 20.8 है। दोनों के प्राप्त अंकों के मध्यमान में अधिक अंतर यह स्पष्ट करता है कि दोनों समूहों के व्यक्तित्व में अंतर है अर्थात् प्राप्त परिणाम हमारी परिकल्पना के अनुरूप पाये जाते हैं।
अतः हमारी परिकल्पना स्वीकृत होती है।
सारणी क्रमांक 2 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि गैर खिलाड़ी छात्रों के प्राप्तांकों का मध्यमान 24.6 है जो कि गैर खिलाड़ी छात्रों के प्राप्तांकों के मध्यमान 19.28 है। दोनों के प्राप्त अंकों के मध्यमान में अधिक अंतर यह स्पष्ट करता है कि दोनों समूहों के व्यक्तित्व में अंतर है अर्थात् प्राप्त परिणाम हमारी परिकल्पना के अनुरूप पाये जाते हैं। उपरोक्त सांख्यिकीय गणना से स्पष्ट है कि गैर खिलाड़ी छात्र खिलाड़ी छात्रों की अपेक्षा अधिक अंतर्मुखी होते हैं।
अतः हमारी परिकल्पना स्वीकृत होती है।
सारणी क्रमांक 3 के अनुसार दोनों प्रदत्तों का मध्यमान क्रमषः 54.3 तथा 45.4 है। इनके मध्य का अंतर ज्ञात करने के लिये टी-मूल्य ज्ञात किया गया जो 4.83 प्राप्त हुआ। इसका सत्यापन करने से ज्ञात हुआ कि दोनों समूहों में 0.05 स्तर पर सार्थक अंतर पाया गया है। यह ;चझ0ण्05द्ध के विष्वास अंतराल पर सार्थक है अर्थात् 95ः विष्वास के साथ हम दोनों समूहों में भिन्नता का सामान्यीकरण कर सकते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि इस अध्ययन की तीनों परिकल्पना सत्य एवं प्रमाणित होती है। आमतौर पर छात्रों में बहिर्मुखी व्यक्तित्व प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है।
अतः उपर्युक्त निष्कर्षों से यह प्रमाणित होता है कि वर्तमान समय में छात्र अपने कैरियर एवं भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए षिक्षा के साथ-साथ खेल षिक्षा के प्रति जागरूक है। जैसा कि षिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में प्रतियोगिता है। इस बात से छात्र तो जागरूक हैं ही साथ में अभिभावक भी जागरूक हो गये हैं। यद्यपि खेल के माध्यम से छात्र अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास कर रहा है जिससे छात्रों को कैरियर के चुनाव, प्रगति एवं विकास में सही निर्देष मिल रहे हैं। इस कारण खिलाड़ी छात्र भी अपने भविष्य की चुनौतियों को लेकर षिक्षा के प्रति जागरूक हैं।
संदर्भ ग्रंथ
1. अठवाल एच.एस. खिलाड़ी और गैर खिलाड़ी छात्राओं के
(2008-09) अंतर्मुखी और बहिर्मुखी व्यक्तित्व प्रवृति का तुलनात्मक अध्ययन
2. कमलेष एम.एल: शारीरिक षिक्षा के तथ्य एवं उपलब्धियाँ, पी.बी. पब्लिकेषन लिमिटेड, फरिदाबाद, हरियाणा
3. गंगवार, वी.आर.ः शारीरिक षिक्षा एवं खेलों का मनोविज्ञान
4. दीक्षित, एस.: खेल मनोविज्ञान, स्पोर्टस पब्लिकेषन, नई दिल्ली प्रकाषन, 2006, पृष्.सं. 124-133
5. माइकल ब्रो (1998): विद्यालय में खेलने वाले खिलाड़ी और न खेलने वाले खिलाड़ियों के व्यक्तित्व का तुलनात्मक अध्ययन
6. सिंह,ए; सिंह, जे. ः शारीरिक षिक्षा तथा ऑलम्पिक अभियान, कल्याणी पब्लिषर्स, प्रथम संस्करण, ए.पी. पब्लिषर्स, जालंधर
7. सिंह ए.के.; आषीष कुमार: आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान, मोतीलाल बनारसी दास, बंगलो रोड, दिल्ली, प्रथम संस्करण 2001, द्वितीय संस्करण 2002

स प्राचार्य,
मनसा षिक्षा महाविद्यालय,
कुरूद, भिलाई नगर (छ.ग.)
सस एम.एड.(छात्र),
मनसा महाविद्यालय, कुरूद,
भिलाई नगर (छ.ग.)

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