‘‘11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों की अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव का अध्ययन‘‘

वाई. राधिका

सारांश
ख्प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य दुर्ग जिले के चरोदा व भिलाई के विद्यालयों में अध्ययनरत ग्यारहवीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के छात्र व छात्राओं की अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव का अध्ययन करना है । अध्ययन हेतु चरौदा व भिलाई के शासकीय विद्यालय के 60 विद्यार्थी व अशासकीय विद्यालय के 60 विद्यार्थियों का चयन यादृच्छिक प्रतिदर्श के आधार पर किया गया । प्रदत्तों का संकलन ‘अध्ययन आदतों‘ के लिए एम.एन. पालसने, अनुराधा शर्मा तथा ‘सांख्यिकीय निष्पत्ति‘ के लिए डॉ. आर.आर.सी. देवा, डॉ. ए. कुमार के उपकरण द्वारा किया गया है। प्रस्तुत शोध के निष्कर्ष इस प्रकार है:-,

शासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों के अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव पाया गया ।
अशासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों के अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव पाया जाएगा ।

प्रस्तावना:-
जन्म के समय बालक पूर्ण रूप से असहाय होता है। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है और परिवार तथा समाज के अधिकाधिक सम्पर्क में आता है, उसका शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास होता जाता है । वस्तुतः विकास के विभिन्न आयाम उसे एक नवीन व अविरल व्यक्तित्व प्रदान करते है अन्यथा विकास के अभाव में यह सम्पूर्ण जीवन एक पशु ही बना रहेगा। इस विकास की आधारशिला शिक्षा है ।
प्रश्न उठता है कि यदि मनुष्य का प्रत्येक अनुभव उसे शिक्षा प्रदान करता है तो फिर विश्व का प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को जीवनकाल में अनेक अनुभव प्राप्त होते रहते है। किन्तु ऐसा नहीं है, शिक्षित एवं अशिक्षित व्यक्ति में अन्तर यह है कि उसके व्यवहार में विकासोन्मुखी परिवर्तन परिलक्षित होता है ।
उदाहरणार्थ यदि गाड़ी में यात्रा करते समय कोई नींद लेने के कारण अपना कीमती सामान गॅंवा बैठता है और अपनी यात्रा के अन्य अवसरों पर भी वह सतर्क नहीं होता और सोता ही रहता है उस व्यक्ति के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया और उसने अपनी पिछली घटना से कोई शिक्षा ग्रहण नही की ।
यजर्वेद में कहा भी है,
‘सा प्रथमा संस्कृतिंर्विश्व वारा‘
यह विश्व की प्रथम संस्कृति है ।
विद्यालयीन विद्यार्थी किशोरावस्था के अन्तर्गत आते है इस अवस्था में बालक का झुकाव जिस ओर हो जाता है, उसी दिशा में आगे बढ़ता है । इस अवस्था में उनकी जो जीवन शैली बन जाती है, वहीं जीवन शैली थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ जीवन पर्यन्त चलती है। अतः जरूरी है कि हम किशोरों में अच्छी अध्ययन आदतों का निर्माण करें।
भविष्य में अच्छी उपलब्धि प्राप्त करने के लिए अध्ययन आदत तथा सांख्यिकीय निष्पत्ति अत्यंत आवश्यक है जिससे वह अपनी अध्ययन आदतों का विकास करें ।
समस्या:-
शिक्षा का सही अर्थ जानने के लिए अध्ययन आदत का होना परम आवश्यक है। मनुष्य की इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है। वह एक ऐसा प्राणी है जिसकी एक आवश्यकता की पूर्ति होती है कि नहीं, दूसरी आवश्यकता जन्म ले लेती है । परन्तु ये आवश्यकताएॅं ऐसे ही संतुष्ट नहीं होती है इसमें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले अधिकांश लोग सांख्यिकी को इस क्षेत्र के अपरिहार्य भाग के रूप में स्वीकार कर लेते है ।
आज की परिस्थिति में बच्चे आदतों में कई प्रकार की अच्छी और बुरी दोनो अलग प्रकार की आदतों को ग्रहण करते है । बालक अध्ययन को अपनी आदतों में शामिल कर ले तो इससे उनकी भावी जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है ।
प्रस्तुत शोध कार्य में ‘11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों की अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव का अध्ययन।‘ को समस्या के रूप में लिया गया है।
शोध के उद्देश्य:-
चयनित समस्या के निम्न उद्देश्य है -
1. शासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों के अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव का अध्ययन करना ।
2. अशासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों के अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव का अध्ययन करना ।
परिकल्पना:-
1. शासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों के अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर कोई प्रभाव नहीं पाया जाएगा।
2. अशासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय विद्यार्थियों के अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर कोई प्रभाव नहीं पाया जाएगा ।
शोध प्रारूप:-
प्रस्तुत शोध में प्रदत्तों के संग्रह के लिए यादृच्छिक न्यादर्श विधि का प्रयोग किया गया।
शोध न्यादर्श:-
प्रस्तुत शोध अध्ययन के लिए दुर्ग जिले के भिलाई के शासकीय व अशासकीय विद्यालयों के 60-60 विद्यार्थियों का चयन यादृच्छिक प्रतिदर्श के आधार पर किया गया, जिसके अंतर्गत कक्षा 11वीं के वाणिज्य संकाय के हिन्दी व अंग्रेजी माध्यम के छात्र व छात्राओं का चयन यादृच्छिक प्रतिदर्श के आधार पर किया गया । कुल मिलाकर 120 विद्यार्थियों का चयन किया गया।
शोध उपकरण:-
प्रस्तुत शोध अध्ययन में अध्ययन आदतों का मापन करने के लिए एम.एन.पालसने व अनुराधा शर्मा के मापनी का प्रयोग किया गया तथा सांख्यिकीय निष्पत्ति का मापन करने के लिए आर.सी.देवा व ए. कुमार की मापनी का प्रयोग किया गया है ।
सांख्यिकीय विश्लेषण:-
प्रस्तुत शोध में प्रदत्तों के विश्लेषण हेतु 2 ग 2 एनोवा ;प्रसरण विश्लेषणद्ध गणना द्वारा निष्कर्षो को प्राप्त किया गया है ।
ऑकड़ो का विश्लेशण:-
परिकल्पना.1 - शासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों के अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव का सांख्यिकीय विश्लेषण:
परिकल्पना.2 - शासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के विद्यार्थियों पर अध्ययन आदत के अंकों के आधार पर उच्च, सामान्य एवं निम्न समूह बनाये गए । जिनके सांख्यिकीय निष्पत्ति में मध्यमान तथा प्रमाणिक विचलन की गणना की गई। जिसे निम्न सारणी क्रमांक 1.1 में दर्शाया गया है ।
सारणी क्रमांक - 1.1
शासकीय विद्यालय के विद्यार्थियों के सांख्यिकीय निष्पत्ति पर मध्यमान, प्रमाणिक विचलन एवं संख्या
उच्च सामान्य निम्न
छ ड ैक् छ ड ैक् छ ड ैक्
8 29.88 8.94 32 20.38 4.81 20 15.6 4.16
उपर्युक्त तालिका में उच्च समूह का मध्यमान 29.88 तथा सामान्य का मध्यमान 20.38 निम्न समूह का मध्यमान 15.6 है । अवलोकन करने से हमें यह ज्ञात होता है कि तीनों समूहों के मध्यमान में अंतर पाया गया । यह अन्तर सार्थक है या नहीं यह देखने के लिए व्छम् ॅ।ल् ।छव्ट। की गणना की गयी है । जिसका सारांश निम्न तालिका क्रमांक-1.2 में दर्शाया गया है।
सारणी क्रमांक - 1.2
व्छम् ॅ।ल् ।छव्ट। (शासकीय विद्यालय के कुल विद्यार्थियों का)
प्रसरण वर्गो का क िमध्यमान ष्थ्ष् परिणाम
स्रोत योग वर्ग अनुपात
समूह के 1171.68 2 585.82
मध्य
आंतरिक 1726.82 57 30.295
समूहो के 19.338 च्ढ0.01
भीतर
कुलयोग 2898.5 59
कि;2ण्57द्ध द्वारा प्राप्त श्थ्श् का मान, गणना द्वारा प्राप्त श्थ्श् के मान से कम है इसीलिये 0.01 स्तर पर दोनों समूहों में सार्थक अंतर पाया जायेगा। अतः परिकल्पना-1 अस्वीकृत की जाती है ।
प्रत्येक दो समूहों के मध्य सार्थक अंतर है या नहीं यह देखने हेतु श्जश् का मान निकाला गया । जिसे निम्न तालिका 1.3 में दर्शाया गया है ।
सारणी क्रमांक 1.3
श्जश् मूल्य (शासकीय विद्यालय के विद्यार्थियों का)
समूह क िश्जश् मूल्य परिणाम
उच्च एवं सामान्य 38 2.9 च् ढ 0ण्01
सामान्य एवं निम्न 50 3.79 च् ढ 0ण्01
उच्च एवं निम्न 26 4.33 च् ढ 0ण्01
उच्च एवं सामान्य समूहों का कत्रि38ए श्जश् त्र 2ण्9 पाया गया जो 0.01 स्तर पर सार्थक नहीं है जो दर्शाया है कि उच्च एवं सामान्य समूहों के विद्यार्थियों का सांख्यिकीय निष्पत्ति में अंतर पाया गया है । अतः परिकल्पना-1 उच्च एवं सामान्य समूह के सन्दर्भ में अस्वीकृत है ।
सामान्य एवं निम्न समूहों में कत्रि50 श्जश् त्र 3ण्79 पाया गया जो 0.01 स्तर पर सार्थक नहीं है। जो दर्शाता है कि सामान्य एवं निम्न समूहों के विद्यार्थियों का सांख्यिकीय निष्पत्ति में अंतर नहीं पाया गया । अतः परिकल्पना-1 सामान्य एवं निम्न समूह के सन्दर्भ में अस्वीकृत है ।
उच्च एवं निम्न समूहों में कत्रि26ए श्जश् त्र4ण्33 पाया गया जो 0.01 स्तर पर सार्थक है, जो दर्शाता है कि उच्च एवं निम्न समूहों के विद्यार्थियों में सांख्यिकीय निष्पत्ति में अंतर पाया गया है । अतः परिकल्पना-1 उच्च एवं निम्न समूह के सन्दर्भ में अस्वीकृत है ।
यह प्रमाणित करता है कि उच्च एवं निम्न विद्यार्थियों (शासकीय विद्यालय) के अध्ययन आदत समूहों में सार्थक सांख्यिकीय निष्पत्ति पायी गई। उच्च समूह की सांख्यिकीय निष्पत्ति उच्च तथा निम्न समूह की सांख्यिकीय निष्पत्ति निम्न है ।
परिकल्पना. 2 - ‘अशासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों के अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव का सांख्यिकीय विश्लेषण:
अशासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के विद्यार्थियों पर अध्ययन आदत के अंकों के आधार पर उच्च, सामान्य एवं निम्न समूह बनाये गए । जिनके सांख्यिकीय निष्पत्ति में मध्यमान तथा प्रमाणिक विचलन की गणना की गई। जिसे निम्न सारणी क्रमांक 2.1 में दर्शाया गया है ।
सारणी क्रमांक - 2.1
अशासकीय विद्यालय के विद्यार्थियों के सांख्यिकीय निष्पत्ति पर मध्यमान, प्रमाणिक विचलन एवं संख्या
उच्च सामान्य निम्न
छ ड ैक् छ ड ैक् छ ड ैक्
14 22.07 7.81 30 22.47 6.65 16 16.88 7.30
उपर्युक्त तालिका में उच्च समूह का मध्यमान 22.07 तथा सामान्य का मध्यमान 22.47 तथा निम्न समूह का मध्यमान 16.88 है । अवलोकन करने से हमें यह ज्ञात होता है कि तीनों समूहों के मध्यमान में अंतर पाया गया । यह अन्तर सार्थक है या नहीं यह देखने के लिए व्छम् ॅ।ल् ।छव्ट। की गणना की गयी है । जिसका सारांश निम्न तालिका क्रमांक-2.2 में दर्शाया गया है।
सारणी क्रमांक - 2.2
व्छम् ॅ।ल् ।छव्ट। (अशासकीय विद्यालय के कुल विद्यार्थियों का)
प्रसरण वर्गो का क िमध्यमान श्थ्ष् परिणाम
स्रोत योग वर्ग अनुपात
समूह के 352.03 2 176.015
मध्य
आंतरिक 3034.15 57 53.231
समूहो के 3.307 च्ढ0ण्05
भीतर
कुल योग 3386.18 59
कि;2ण्57द्ध द्वारा प्राप्त श्थ्श् का मान, गणना द्वारा प्राप्त श्थ्श् के मान से कम है इसीलिये 0.05 स्तर पर दोनों समूहों में सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा। अतः परिकल्पना-2 अस्वीकृत की जाती है ।
प्रत्येक दो समूहों के मध्य सार्थक अंतर है या नहीं यह देखने हेतु श्जश् का मान निकाला गया। जिसे निम्न तालिका 2.3 में दर्शाया गया है ।
सारणी क्रमांक 2.3
श्जश् मूल्य (अशासकीय विद्यालय के विद्यार्थियों का)
समूह क िश्जश् मूल्य परिणाम
उच्च एवं सामान्य 42 0.17 च् झ 0ण्05
सामान्य एवं निम्न 44 2.55 च् ढ 0ण्05
उच्च एवं निम्न 28 1.87 च् झ 0ण्05
उच्च एवं सामान्य समूहों का कत्रि42ए श्जश् त्र 0ण्17 पाया गया जो 0.05 स्तर पर सार्थक नहीं है जो दर्शाता है कि उच्च एवं सामान्य समूहों के विद्यार्थियों का सांख्यिकीय निष्पत्ति में कोई अंतर नहीं पाया जाता है । अतः परिकल्पना-2 उच्च एवं सामान्य समूह के सन्दर्भ में स्वीकृत है ।
सामान्य एवं निम्न समूहों का कत्रि44ए श्जश् त्र 2ण्55 पाया गया जो 0.05 स्तर पर सार्थक है । जो दर्शाता है कि सामान्य एवं निम्न समूहों के विद्यार्थियों का सांख्यिकीय निष्पत्ति में अंतर पाया गया। अतः परिकल्पना-2 निम्न एवं सामान्य समूह के सन्दर्भ में अस्वीकृत है ।
उच्च एवं निम्न समूहों का कत्रि28ए श्जश् त्र1ण्87 पाया गया जो 0.05 स्तर पर सार्थक नहीं है, जो दर्शाता है कि उच्च एवं निम्न समूहों के विद्यार्थियों का सांख्यिकीय निष्पत्ति में कोई अंतर नहीं पाया जाता है । अतः परिकल्पना-2 उच्च एवं निम्न समूह के सन्दर्भ में स्वीकृत है ।
यह प्रमाणित करता है कि उच्च एवं निम्न विद्यार्थियों ;अशासकीय विद्यालय के अध्ययन आदत समूहों में सार्थक सांख्यिकीय निष्पत्ति पायी गई । उच्च समूह की सांख्यिकीय निष्पत्ति उच्च तथा निम्न समूह के सांख्यिकीय निष्पत्ति निम्न है ।
निष्कर्ष:-
1. शासकीय विद्यालय के 11 वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों की अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव पाया गया क्योंकि उच्च एवं सामान्य, सामान्य एवं निम्न तथा उच्च एवं निम्न समूहों के विद्यार्थियों की अध्ययन के प्रति रूचि अधिक पायी गई जिसके परिणाम स्वरूप उनकी सांख्यिकीय निष्पत्ति भी अधिक पायी गई जिसका कारण यह हो सकता है कि शासकीय विद्यालयों में सांख्यिकीय से संबंधित निष्पत्ति में शिक्षक द्वारा यदि बालक के स्तर के अनुसार सांख्यिकीय विषय में अधिक ध्यान दिया जाये तथा उसे भविष्य में इसकी उपयोगिता के विषय में ज्ञान कराये तो विद्यार्थी की रूचि विकसित होने लगती है जिससे सांख्यिकीय निष्पत्ति में वृद्धि होने लगती है।
2. अशासकीय विद्यालय के 11वीं कक्षा के वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों की अध्ययन आदतों का सांख्यिकीय निष्पत्ति पर प्रभाव सामान्य व निम्न समूह पर पाया जाएगा परन्तु उच्च व सामान्य तथा उच्च व निम्न समूह पर नहीं पाया जाएगा । अर्थात् अशासकीय विद्यालयों में सामान्य व निम्न समूह की अध्ययन आदत अच्छी होने के परिणाम स्वरूप सांख्यिकीय निष्पत्ति भी अच्छी है उच्च व सामान्य तथा उच्च व निम्न की तुलना में ।
जिसका कारण यह हो सकता है कि अशासकीय विद्यालयों में शिक्षकों को पर्याप्त सुविधा नहीं मिल पाती जैसे- वेतन में कमी, सुविधाओं का अभाव, अधिक कार्यभार व कार्यालय का अतिरिक्त कार्य आदि कारणों के होने से वे अपने शिक्षण कार्य पर पर्याप्त रूचि नहीं दे पाते है तथा विद्यार्थी की व्यक्तिगत रूचि का ध्यान नहीं रख पाते जिससे विद्यार्थी के अध्ययन में कमी आ जाती है और सांख्यिकीय निष्पत्ति कम होने लगती है। यदि उनकी इन समस्याओं का समाधान कर दिया जाये तो वे शारीरिक व मानसिक रूप से विद्यार्थियों पर ध्यान देंगे जिससे विद्यार्थियों की अध्ययन आदतों में वृद्धि होने से सांख्यिकीय निष्पत्ति में वृद्धि होने लगेगी ।
सुझाव:-
1. विद्यार्थियों को अपने भविष्य में सांख्यिकीय विषय की उपयोगिता का ज्ञान कराना चाहिए।
2. विद्यार्थियों को अधिक से अधिक सांख्यिकी विषय से संबंधित विभिन्न प्रकार की पुस्तकें अभ्यास के लिए उपलब्ध करनी चाहिए ।
3. विद्यार्थियों के स्तर के अनुसार उनकी रूचियों का व्यक्तिगत रूप से ध्यान रखना चाहिए ।
4. सांख्यिकीय निष्पत्ति में वृद्धि के लिए शिक्षकों, अभिभावकों को विद्यार्थियों को सकारात्मक रूप से प्रोत्साहित करना चाहिए ।
5. विद्यार्थियों को सांख्यिकीय निष्पत्ति का ज्ञान होने पर वे स्वयं अपना मूल्यांकन कर सकते है।
6. विद्यार्थियों के अध्ययन विषयों के पाठ्यक्रम में अधिक से अधिक ऑकड़ों तथा चित्रों का समावेश किया जाये जिससे वे सांख्यिकीय विषय के प्रति रूचि ले तथा उससे भयभीत न हो।
7. कक्षा अध्यापन के समय सामूहिक अध्ययन आदत की परम्परा को अच्छे ढं़ग से कायम करना चाहिए । साथ ही साथ शिक्षक द्वारा अनुशासन शैली, समय की पाबंदी को कायम रखना चाहिए ।
8. अशासकीय विद्यालयों में शिक्षकों को प्रबंध द्वारा ऐसी सर्व सुविधायें उपलब्ध करायी जाये जिससे वे अपने शिक्षण कर्तव्य के प्रति जागरूक हो तथा सभी स्तर के विद्यार्थियों की अध्ययन आदतों मे सुधार लाते हुए सांख्यिकीय निष्पत्ति में वृद्धि कर सकें ।
9. शासकीय शालाओं के शिक्षकों को विद्यार्थियों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं तथा रूचियों को ध्यान में रख सांख्यिकीय विषय में अध्ययन आदतों का विकास किया जाना चाहिए।
10. अभिभावकों व विद्यालयों को कहीं पर भी पुस्तकीय प्रदर्शन का आयोजन होने पर अवश्य ले जाना चाहिए तथा सांख्यिकीय विषय के साथ ही प्रत्येक विषय की उपयोगिता का ज्ञान कराना चाहिए।
संदर्भ ग्रंथ:-
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माथुर, एस.एस. (2007), शिक्षा मनोविज्ञान, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा-2 ‘पृष्ठ 237-239‘
शर्मा, आर.ए. (2003)ः शिक्षा और मनोविज्ञान में सांख्यिकी, आर.लाल. बुक डिपों, मेरठ ‘पृष्ठ 1-18‘
शुक्ल डॉ. एस.एम. एवं सहाय डॉ. शिव पूजन ‘1997‘ सांख्यिकीय के सिद्धांत, साहित्य भवन पब्लिकेशन आगरा, ‘ पृष्ठ 1-25
सिरोही ;2004द्ध: निम्न अध्ययन आदत एवं अभिवृत्ति में निम्न उपलब्धि वाले विद्यार्थियों पर अध्ययन जनरल ऑफ इंड़ियन एज्यूकेशन टवसण्ग्ग्ग्एछवण्1ए मई, च्च्ण्14.19
ऐवन्स व्रेन ;2007द्ध: आरंभिक स्नातक महाविद्यालय की सांख्यिकीय में छात्र अभिवृत्ति, धारणा और निष्पत्ति का अध्ययन, ज्ीम डंजीमउंजपबे म्कनबंजपवदए टवसण्17, छवण् 24.30
स सहायक प्राध्यापिका,
छत्तीसगढ़ कल्याण शिक्षा महाविद्यालय, अहेरी, नंदिनी रोड़.

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