इन्टरनेट से बदलता हिन्दी का विज्ञापन-युग

डॉ. सुधीर शर्मा,
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भिलाईनगर

इंटरनेट के आगमन से हिन्दी की दुनिया ही बदल गई है । पहले हिन्दी का सामान्य व्यवहार, फिर भाशा, साहित्य, संस्कृतऔर अब हिन्दी के मनुश्य का घर-परिवार भी इंटरनेट के डिब्बे में कैद होते जा रहे हैं । दुनिया में इंटरनेट के जितने उपयोगकर्ता हैं उनमें हिन्दी की संख्या तेजी से आगे बढी है । आंकडे तो यहां तक कहते हैं कहिन्दी दूसरे नंबर पर है । इंटरनेट के इस जादुई दुनिया ने शहरी उपभोक्ता के मन-मस्तिश्क, लोक-व्यवहार और जीवन-शैली को प्रभावित करने की कोशिश की है । इसमें वह सफल भी है ।
आज का युग विज्ञापनों का युग है, यह जुमला अब बदल चुका है । आज का युग इलेक्ट्ानिक मीडिया के विज्ञापनों का युग है, यह बदलाव हुआ है और अब जो बदलाव होगा वह है - यह युग इंटरनेट के विज्ञापनों का युग है ।
इंटरनेट अपने मूलभूत आविश्कार में दूसरों कार्यों के लिए आया था लेकिन मनुश्य ने इसे अपनी सुविधा के लिए बदल दिया हैं । अब विवाह इंटरनेट से हो रहे हैं, नए समाज का उदय हो रहा है फेसबुक, गूगल प्लस, ट्यूटर आदके रूप में । बिजली के बिल, रेल और हवाई जहाज के टिकट, शाॅपंग माॅलों में खरीददारी, इंटरनेट के बाजार से खरीददारी आदइंटरनेट की सुविधा से हो रहे हैं । ऐसे में विज्ञापन कब तक प्रंट और इलेक्ट्ानिक मीडिया की चारदीवारी में कैद रहे । नए युग के विज्ञापन में नए और तेज प्रसार वाले होने चाहिए । इंटरनेट के विज्ञापन इसी प्रवृत्तके विज्ञापन हैं ।
इंटरनेट के विज्ञापन वेबसाइट, ब्लाॅग, सोशल नेटवर्क, इत्यादमाध्यमों पर देखे जा रहे हैं । कहीं डिस्पले के रूप में, कहीं बीच में मेहमान से आ टपकने वाले पाॅप एड के रूप में तो कहीं स्वतंत्र ढंग से । आज इंटरनेट पर वज्ञापन देना ज्यादा अपील कर रहा है। इसके कारण वज्ञापनों से होने वाली प्रेस की आय में गरावट दर्ज की गयी है। इंटरनेट पर वज्ञापनों के आने का सीधा लाभ एओएल,डबल क्लंक एड एक्सइचेंज, याहू और गूगल को पहुँचा है। इनके पास ही खरीदने-बेचने के लए अतरक्त जगह है। ताजा आंकड़ों के अनुसार याहू के डसप्ले् वज्ञापनों में तीसरी तमाही में दो प्रतशत की वृद्ध दर्ज की गयी। याहू की यह आमदनी वगत वर्ष इस दौर में हुई आय से कम है। जबक गूगल की आय में इसी अवध में पछले साल की तुलना में बढोत्तहरी हुई है।
वश्व में एकमात्र अमेरका में ही इंटरनेट का इस साल वज्ञापन के क्षेत्र में वकास देखा गया है। जेनथ ऑप्टग मीडया के अनुसार अमेरका में इस साल नेट वज्ञापनों का कारोबार बढ़कर 9.2 प्रतशत यानी 54.1 बलयन डॉलर का हो जाने की संभावना है। यह भी देखा गया है क अखबारों की वेबसाइट पर ज्यादा वज्ञापन नहीं आए हैं। मसलन् न्यूायार्क टाइम्स के वेब वज्ञापनों में गरावट दर्ज की गई है। अकेले इस साल की तीसरी तमाही में वगत वर्ष की इसी तमाही की तुलना में 18.5 प्रतशत की गरावट आयी।
टाइम के वेब वज्ञापनों की आय में भी कमी आयी है, खासकर वर्गीकृत वज्ञापनों के गायब हो जाने से। नेट पर वर्गीकृत वज्ञापनों में आयी गरावट का एक बड़ा कारण है डसप्ले वज्ञापनों का नेट पर बढ़ता चलन। अब नेट पर डसप्लेम वज्ञापनों की बहार है। उनसे आय भी बढ गयी है। खुदरा वज्ञापनों में 58 प्रतशत का इजाफा हुआ,यानी 5.4 मलयन डॉलर का धंधा कया गया है ।
यह भी देखा जा रहा है क नेट पर स्थानीय वज्ञापन ज्यादा आ रहे हैं राष्ट्रीय वज्ञापन कम आ रहे हैं। अखबार की वेब पर वज्ञापन कम होने का एक कारण यह भी है क नेट पर वज्ञापन देने वाले सस्ती जगह खोजते हैं और इस चक्कर में अखबारों को घाटा उठाना पड़ रहा है। डसप्लेस वज्ञापनों की प्रत हजार बार प्रस्तुत की कीमत और प्रभाव ज्यादा अच्छा रहा है। लागत के लहाज से ये सस्ते होते हैं। नेट पर वज्ञापन देने वाले यह भी देखते हैं क आखरकार नेट पर कौन लोग जाते हैं ।
न केवल भारत अपितु विश्व के इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कनेट का यूजर वशष्ट होता है। अखबार के पाठक जैसे सभी कस्म के लोग होते हैं नेट के यूजर सभी कस्म के लोग नहीं होते। मसलन गरीबों में नेट यूजर नहीं हैं। चूंक बाजार में मुनाफा कम है अतएव कंपनयां सस्ता प्रचार चाहती हैं। नेट इस मामले में उनकी मदद कर रहा है।
इंटरनेट पर किसी भी ब्लॉग अथवा वेबसाइट पर विज्ञापन लगाते समय एक दिक्कत जो पेश आती है वह यह कओनलाइन विज्ञापन कुछ पूर्वनिर्धारित साइजों में ही उपलब्ध होते हैं। ये पूर्व निर्धारित बैनर साइजों की वजह से ब्लॉग या साइटों के प्रबंधकों को अपनी साइट की डिजाइन उसी हिसाब से करनी रहती है और इस वजह से कभी कभी वे विज्ञापन भी नहीं लगा पाते । उदाहरण के लिए मान लीजिए आपके ब्लॉग की साइडबार का कद चौडाई में 200 पिक्सल ही है. ऐसी सूरत में आप विभिन्न एड नेटवर्कों की बॉक्स एड नहीं लगा पाएंगे क्योंकबॉक्स एड की साइज या तो 250 बाई 250 पिक्सल की अथवा 300 बाई 250 पिक्सल की होती है। परंतु अब एक नई विज्ञापन तकनीक की मदद से यह परिदृश्य पूरी तरह से बदल सकता है। टोरंटो विश्वविद्यालय के इलैक्ट्रकल और कम्यूयीटर इंजीनियर पार्हम आराबी ने यह नई तकनीक विकसित की है । इस तकनीक की मदद से किसी भी साइट पर किसी भी साइज की एड प्रदर्शित की जा सकेगी । इस तकनीक पर आधारित विज्ञापन स्वतः ही किसी भी साइज में समायोजित हो जाएगा । इससे साइट प्रबंधकों के लिए विज्ञापन लगाना काफी सरल हो जाएगा । यह तकनीक इसलिए भी उपयोगी है क्योंकइसकी मदद से आईफोन और आईपैड पर विज्ञापन प्रदर्शित करना काफी सरल हो जाएगा। फिलहाल इन डिवाइजों पर विज्ञापन प्रदर्शित करने मे कद की वजह से दिक्कत आती है। जाहिर है इस तकनीक का व्यापक उपयोग शुरू हो जाने पर ओनलाइन विज्ञापन सेवा में क्रांतआएगी.
इंटरनेट पर विज्ञापनों की अपनी अलग प्रवृत्तहै । ये विज्ञापन सामान्य चीजों के नहीं होते । यह तो तय है कआपने आज तक कभी आलू, प्याज, टमाटर, लहसुन, अदरक, गेहूँ, दाल, चावल (कृपया बासमती को अपवाद मानें), साग-सब्जियाँ आदके विज्ञापन न तो कभी देखे होंगे और न ही भविष्य में कभी देखेंगे। ये सब तो रोजमर्रा की जरूरत है और इन वस्तुओं को तो आप खरीदेंगे ही। जब आप इन्हें वैसे ही खरीदेंगे तो भला इन चीजों का विज्ञापन कर के कौन बेवकूफ अपने रुपये गारत करेगा?
विज्ञापन तो उन वस्तुओं का होता है जो आपके लिये कतई जरूरी नहीं हैं और उनके बिना आपका काम आसानी से चल सकता है। किन्तु विज्ञापन के माध्यम से आपका ब्रेन-वाशंग करके आपके दिमाग में बुरी तरह से घुसा दिया जाता है कजिस वस्तु का विज्ञापन किया जा रहा है वह आपके लिये निहायत जरूरी है कउसके बिना आपका जीवन निरर्थक है। उदाहरणार्थ यदआप कोल्ड-ड्रंक नहीं पियेंगे, तो आपको कोई घास नहीं डालेगा, फलाँ साबुन इस्तेमाल नहीं करेंगे तो जमाने से पीछे रह जायेंगे आदि। सही बात तो यह है कइन विज्ञापनों से आपको लुभाकर व्यापार के नाम से आप को लूटा जाता है। मात्र बीस-पच्चीस पैसे के त्रिफला (हर्रा-बहेरा-आँवला) चूर्ण को दो-तीन रुपये में बेच दिया जाता है, मुफ्त के पानी को आकर्षक पैकंग में डालकर दो से पन्द्रह रुपये में बेचा जाता है। इंटरनेट की विज्ञापन मानसिकता को इस तर्क से समझा जा सकता है ।
इंटरनेट पर विज्ञापनों में अंग्रेजी का वर्चस्व दिखाई देता है । हिन्दी में तेजी से इंटरनेट उपभोक्ता बढने से तसवीर बदलती जाएगी । आज इंटरनेट में विज्ञापनों की दुनिया को देखें तो पता चलता है कपूर्व में गूगल एडसेंस के विज्ञापन हिन्दी भाषा वाली साइट्स में दिखाये जाते थे किन्तु नवंबर 2007 से गूगल ने हिन्दी साइट्स में अपने विज्ञापन दिखाने बंद कर दिये क्योंकहिन्दी उनकी अधिकृत भाषा की सूची में नहीं है। ऐसे में एडसेंस की ही तर्ज पर विज्ञापन दिखाने वाली नई कंपनी एडमाया का आना हिन्दी ब्लोगर्स के लिये स्वागतेय है। एडमाया विशेष तौर पर हिन्दी साइट्स के लिये ही है और हिन्दी के ब्लोग्स में अपने विज्ञापन दिखाती है। एडमाया के विज्ञापन “प्रतक्लिक भुगतान” विज्ञापन होते हैं याने ककिसी ने आपके ब्लोग पर एडमाया के विज्ञापन पर क्लिक किया और आपकी कमाई हुई!
एडमाया में अपना पंजीकरण करना बहुत ही आसान है। बस यहाँ क्लिक करके एडमाया के रजिस्ट्रेशन फॉर्म को भर दीजिये और लगभग चौबीस घंटे प्रतीक्षा कीजिये स्वीकृतमेल आने का। स्वीकृतमेल आने के बाद एडमाया में लागिन करके विज्ञापन का कोड प्राप्त करके अपने ब्लोग में उसे लगा दीजिये। बस इतना ही तो आपको करना है। एडमाया से फिलहाल बहुत अधिक कमाई की उम्मीद तो नहीं की जा सकती क्योंकएक तो अभी यह कंपनी एकदम नई है और इन्हें अभी सीमित संख्या में ही विज्ञापन मिला हुआ है, और दूसरे हिन्दी ब्लोग्स के पास पाठकों की कमी भी है। फिर भी कुछ भी कमाई ना होने से कुछ तो कमाई के होने को तो बेहतर ही माना जायेगा कहा भी गया हैय “नहीं मामा से काना मामा अच्छा”! और हाँ, इस बात का अवश्य ही ध्यान रखें कएडमाया के विज्ञापन को लगाने के बाद न तो स्वयं ही अपने विज्ञापनों पर क्लिक करना है और न ही अपने परिजनों, मित्रों या परिचितों से क्लिक करवाना है। ऐसा करना वास्तव में धोखा देना है और आपके इस धोखे की पोल देर-सबेर खुल ही जाना है जो कसोने की अंडा देने वाली मुर्गी को एक बार में ही मार डालना सिद्ध होगा।
इंटरनेट पर विज्ञापनों के आने से विज्ञापन जगत की शब्दावली भी बदल गई है । डिस्लेहै विज्ञापन से बात अब पाॅप अप विज्ञापनों तक पहुंच गई है । इस संबंध में टाइम्स आॅफ इंडिया का उदाहरण उल्लेखनीय है ।
टाइम्स ऑफ इंडिया मेरा प्रिय अखबार रहा है। कम से कम दो दशक तक हर सुबह एक कप चाय और टाइम्स ऑफ इंडिया से शुरू होती थी। यहाँ, देश से दूर इस अखबार की वेबसाइट ही इसे पढ़ने का एकमात्र साधन है। पर हद से ज्यादा पॉप-अप विज्ञापनों के चलते इसे पढ़ना सजा हो जाता है। अपने पर्सनलाइज्ड गूगल होमपेज में मैं ने टाइम्स ऑफ इंडिया की फीड डाली हुई है, पर किसी कड़ी को क्लिक करने पर स्वयं को कोसता हूँ कक्यों क्लिक किया। एक के बाद एक चार पॉप-अप विज्ञापन खुलते हैं, जिन्हें किसी तरह बन्द कर के अपने काम का पृष्ठ खोज निकालना पड़ता है कृ इन में से दो तो स्मैश-हिट्स के होते हैं जो कबहुत ही ढ़ीठ किस्म का पॉप-अप है। फिर स्पाइवेयर का भी डर रहता है। मैं जान बूझ कर इन में से किसी का भी लंक नहीं दे रहा हूँ, क्योंकपॉप-अप विज्ञापनों से मुझे बड़ी कोफ्त होती है। घर के कंप्यूटर पर तो गूगल टूलबार सारे पॉप-अप रोक देता है, पर दफ्तर के पॉप-अप ब्लॉकर को टाइम्स पछाड़ देता है।
यह समझ नहीं आ रहा कटाइम्ज ऑफ इंडिया वाले इतना लालच क्यों करते हैं। शायद उन्होंने इस बात की गणना की होगी कपॉप-अप विज्ञापनों से खीझ कर भाग जाने वाले पाठकों की अपेक्षा उन विज्ञापनों पर क्लिक करने वालों से या उन विज्ञापनों के मालिकों से ज्यादा कमाई होती है। आखिरकार बात “बॉटम-लाइन” की ही होती है। पर फिर भी टाइम्स ऑफ इंडिया के स्तर की कंपनी का कुछ तो उत्तरदायित्व बनता है अपने पाठकों के प्रति। रेडिफ से लेकर हिन्दुस्तान टाइम्ज सभी पॉप-अप विज्ञापनों का प्रयोग करते हैं पर मेरे अनुभव से टाइम्स ऑफ इंडिया के पॉप-अप सब से ज्यादा हैं। ऐसे में मैं इन अखबारों के ई-पेपर पर ज्यादा निर्भर करता हूँ, क्योंकवहाँ पॉप-अप नहीं आते। इस के इलावा हिन्दी के अखबारों में भी कम पॉप-अप आते हैं। हाल में कुछ ब्लॉगर बन्धुओं ने भी जाने अनजाने पॉप-अप विज्ञापन डालने शुरू कर दिए हैं। उन से भी निवेदन करूँगा कयदविज्ञापन डालने ही हैं तो ऐसे डालें कवे पृष्ठ को पढ़ने में बाधक न बनें।
पॉप अप विज्ञापन इंटरनेट उपयोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए बनाये गए ऑनलाइन विज्ञापन का एक तरीका है। कई बार उपयोक्ताओं के द्वारा वांछित जालस्थल खुलने के साथ ही एक विज्ञापन वंडो भी खुलती है, उसे ही पॉपअप कहते हैं। कई बार विज्ञापनों के अलावा वेबपेज पर माउस के कहीं और क्लिक करने से भी पॉपअप आ जाते हैं। इंटरनेट पर इन विज्ञापनों की प्रोग्रामंग जावास्क्रप्ट के द्वारा की जाती है। कई बार किसी वेबसाइट पर जाते हुए इतने अधिक पॉप अप्स खुल जाते हैं, ककाम करना मुश्किल हो जाता है।ख्1, कुछ पॉप-अप काम के होते हैं, जैसे यदकिसी चित्र पर क्लिक करते हैं उसका बड़ा रुप देखने के लिए, तो वह पॉप-अप वंडो में खुल सकता है, या कोई सूचना प्रारूप भी किसी दूसरी पॉप अप वंडो में खुल सकता है। वहीं कुछ पॉप-अप वंडो में अनुपयुक्त सामग्री भी हो सकती है या अनचाहे ही कंप्यूटर पर कुछ खतरनाक सॉफ्टवेयरों (जिन्हे स्पाईवेयर या ऐडवेयर कहा जाता है) को डाउनलोड करने के लिए मार्ग बन सकती हैं। ये पॉपअप वंडो कई प्रकार की होती हैं।
ऽ जनरल ब्राउजर पॉप-अप
जनरल ब्राउजर पॉप-अप साधारण पॉप-अप होते हैं, जो किसी जालस्थल के खुलने के साथ ही खुल जाते हैं, और कई बार तो इनकी संख्या इतनी अधिक हो जाती है कसाइट पर कुछ पढ़ना भी मुश्किल हो जाता है। साथ ही रैम पर भी अतिरिक्त स्थान घेरते हैं।
ऽ स्पाइवेयर पॉपअप
स्पाइवेयर पॉपअप खतरनाक पॉप अप होते हैं, जो किसी सीडी या इंटरनेट आदद्वारा कोई सॉफ्टवेयर स्थापित करते समय कंप्यूटर में आ जाते हैं। ये स्पाईवेयर वायरस इतने खतरनाक होते हैं ककभी-कभी इनके माध्यम से कंप्यूटर के आवश्यक डाटा तक चुरा लिए जा सकते हैं। इसके साथ ही इनके माध्यम से किसी कंप्यूटर की इंटरनेट प्रयोग पर भी नजर रखी जा सकती है। इसके अलावा यह कंप्यूटर की हार्ड ड्राइव की काफी जगह भी घेरते हैं। इस तरह ये कंप्यूटर की गतभी धीमी कर देते हैं।,
कई वेब ब्राउजर होते हैं जिनमें पॉपअप वंडोज को ब्लॉक करने का विकल्प दिया होता है। फायरफॉक्स एक्लोतिंोरर में जनरल ब्राउजर पॉपअप को ब्लॉक करने के लिए, टूल मेन्यू खोलने करने के बाद ऑप्शन में जाकर, कंटेंट में ब्लॉक अप वंडोज कर सकते हैं। माइक्रोसॉफ्ट वंडोज इंटरनेट एक्सप्लोरर में टूल मेन्यु में पॉप ब्लॉकर में टर्न ऑन पॉपअप ब्लॉकर पर क्लिक करें। ओपेरा पहला ब्राउजर था, जिसने पॉपअप ब्लॉक करने का विकल्प दिया था।
इसके अलावा गूगल टूलबार स्थापित होने पर उसमें भी पॉप ब्लॉकर उपलब्ध होता है।
इंटरनेट विज्ञापनों की तकनीकी बातों और उसके फैलाव से विज्ञापन की इस नई तकनीक पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक हो जाता है । आज के युग में मनुश्य केे जीवन में वाणिज्य की महत्ता गहरे तक पैठ कर चुकी है । बिना बाजार के मनुश्य का जीवन असंभव है । साधु संत और राजनेता से लेकर भिखारी तक बाजार सापेक्ष हो चुका है । दरअसल मनुश्य एक उपभोक्ता के रूप में, एक प्राॅडक्ट के रूप में तब्दील हो चुका है । ऐसे मेें जब हर कार्य इंटरनेट हो और इंटरनेट मनुश्यरूपी प्राॅडक्ट के लिए एक विश्वपटल के रूप में लोकप्रिय हो रहा हो, तब विज्ञापनों के बदलते चेहरे को आंकना, उसे निहारना और उस पर निरंतर चंतन करना अत्यंत जरूरी है । बाजार के रूप में बदलती दुनिया में नैतिकता, जीवन-मूल्य और संस्कृतको बचाने के लिए हमले करने वाली ताकत की ताकत को पहचानना भी जरूरी है । पाॅप अप विज्ञापन ने बाजार बदलने की कोशिश की है तो इंटरनेट का उपयोगकर्ता उसे अपने अनुकूल ढालने की कोशिश में लगा हुआ है । भारतीय मनुश्य की यही विशेशता है कनई तकनीक का वह सदैव स्वागत करता है परंतु उसका भारतीयकरण करके उसे अपने अनुरूप ढाल लेता है । इंटरनेट का अब भारतीयकरण हो चुका है । लोक से लेकर सत्ता तक उसके सार्थक उपयोग को पहचानता है । जीवन का वाणिज्य बाजार की ताकत से चुनौती लेते हुए पारंपरिकता और आधुनिकता के मध्य मार्ग तलाश रहा है । इस नए मार्ग पर भारतीय नियमों के निर्माण की आवश्यकता है ।

संदर्भ -
1- शर्मा, सुधीर, हिन्दी के आधुनिक विज्ञापन, सर्वप्रिय प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011.
2- कौल, रमण, इधर-उधर की हिन्दी, वेबसाइट्स टाइम्स आॅफ इंडिया,
3- अवधिया जी के, ब्लाॅग धान की धरती, रायपुर
4- विकिपीडिया, वेबसाइट्स

1 टिप्पणी:

  1. यार मित्र, इतना बड़ा लिखोगे तो पढ़ने के लिए इतना टाइम किसके पास होगा?

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