भारतीय संघ में राज्यपाल पद का औचित्य: एक विवेचनात्मक अध्ययन

डॉ. जयश्री वाकणकर

एक महान्, ऐतिहासिक, प्रतिष्ठित, गौरवमयी,संवैधानिक संस्था अपने नकारात्मक भूमिकाओं के कारण दिन-ब-दिन गरिमाहीन अप्रतिष्ठित, राजनीतिक होती जा रही है । संसद, विधानमंडलों, सार्वजनिक मंच, सेमीनार आदि में उसकी भर्त्सना की जाती है, उसकी उपयोगिता और उसके पीछे की भव्यता पर समय-समय पर औचित्यतता का सवाल दागा जाता है । निरंतर खोती जनआस्था वाले इस संवैधानिक पद की निरंतरतापर विचार आवश्यक हो जाता है । संविधान निर्माताओं की आशाओं के धूमिल होने, नियुक्ति संबंधी विवादो, स्व-विवेकीय यूक्तियों को पक्षपाती उपयोग, राष्ट्रपति शासन के काल में विवादित भूमिकाओं, राज्यपालों के अभिभाषण संबंधी विवादों, विपक्ष के साथ तनावपूर्ण संबंध, केन्द्र-राज्य संबंधो के संदर्भ में असंतुलित भूमिका, राज्यपालों की बर्खास्तगी, स्थानान्तरण, राजनीतिक सक्रियता, विधानसभा में पक्षपाती आचरण, कुलाधिपति के रूप में विवादस्पद भूमिकाओं संबंधी उठने वाले अनेक प्रश्नों के कारण इस पद की औचित्यता पर प्रश्न उठता है । इन प्रश्नों के समाधान में ही इस पद की सार्थकता निहित है और अनुत्तरित रहने के कारण यह मांग उठती है कि -संविधान निर्माताओं की आशाएं पूरी न हो, अभिजात्थवादी छवि दिखाई दे, दलगत आधार पर नियुक्ति हो, सहयोग के बजाय संघर्ष पैदा करने वाला हो, सबसे अधिक विवादित आलोचित हो, जनता उस पर आस्था न रखे, वह आचार संहिता का उल्लंघन करें, उसे समाप्त करने की मांग उठे, लोकतंत्र का हत्यारा कहलाये, तब इस पद का क्या औचित्य है ?राज्यपालों द्वारा सिर्फ नकारात्क भूमिका नहीं निभायी गयी, अच्छे योग्य व्यक्तियों के इस पद पर पहुँचने पर सृजनात्मक भूमिका भी देखने को मिलती है। वे राज्य के विकास में मंत्रिमंडल के साथ कदम बढ़ाते है ।

राज्यपाल की औचित्यतता की मांग पर समीक्षा अनिवार्य है। राज्यपाल का औचित्य है। राज्यपाल के औचित्य पर विभिन्न आयोगो, समितियों ने विचार करते हुए इसके कार्यो के महत्व को देखते हुए इस पद को समाप्त करने के बजाय इसमे सुधार चाहती है। इस पद की समाप्ति की मांग वह दल करता है, जिसके राजनीतिक हित इस पद के कारण् प्रभावित होते है । यही दल केन्द्र में सत्तारूढ़ होते ही इसी पद को बनाए रखना चाहती है। इस स्थिति में राज्यपाल की औचित्यतता पर विचार करते समय दोनो पहलुओं को ध्यान में रखना होगा कि-
1. यदि राज्यपाल पद समाप्त किया जाता है तो नई वैकल्पिक व्यवस्था क्या हो सकती है ?
2. यह पद निरंतर बना रहता है तो इस पद संबंधी विवादो का समाधान क्या हो सकता है?
राज्यपाल की औचित्यतता पर प्रश्न करने वालो के लिए यह संस्थ पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुकी है । आज अनावश्यक तरह की अनेक संस्था-राज्यसभा आदि के समाप्ति की मांग की जा रही है । तर्क दिया जा रहा है कि देश बडा है तो सरकार भी हाथी जैसी आवश्यक नही है ।
राज्यपाल के पद से महत्वपूर्ण उसके कार्य है? इसलिए इसके कार्यो को संपादित करने हेतु नई वैकल्पिक व्यवस्था को अपनाने के साथ राज्यपाल पद को समाप्त किया जा सकता है । इस नई वैकल्पिक व्यवस्था हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकता है:-
1. सरकार निर्माण हेतु आमंत्रित करने व मंत्रियों को शपथ दिलाने का कार्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशो को सौपा जा सकता है ।
2. विधानसभा में बहुमत परीक्षण का कार्य कुछ शर्तो के साथ विधानसभाध्यक्षों को सौपा जा सकता है ।
3. विधेयकों को स्वीकृति देने, अध्यादेश जारी करने, विधायन पूर्व मंजूरी संबंधी कार्य राष्ट्रपति को सौपे जा सकते है ।
4. विधानसभा के सामान्य नियमित सत्र बुलाने की विधि, दिन, अवधि आदि पहले से निर्धारित हो तथा आकस्मिक सत्र बुलाने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होगी।
5. मंत्रिपरिषद की बैठकांे, निर्णयों की सूचना राष्ट्रपति को दी जायेगी।
6. विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति संबंधी भूमिका मुख्यमंत्री को सौपी जा सकती है ।
7. राज्य की प्रशासनिक एवं कानूनी व्यवसथा पर रिपोर्ट भेजने का कार्य राज्य के अन्य अधिकारियों एवं केन्द्रीय जनसंपर्क कार्यालय को दिया जा सकता है ।
8. राष्ट्रपति शासन काल में राज्यपालों की भूमिका राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त सलाहकार को सौंपी जा सकती है ।
9. राष्ट्रपति को राज्यपाल संबंधी ये भूमिकाएॅं निभाने में सहायक करने हेतु राष्ट्रपति द्वारा सचिवालय में एक विशेष सेल का गठन किया जा सकता है ।

स सहा. प्राध्यापक
श्री शंकराचार्य महाविद्यालय
से .6 भिलाई {छ.ग.}

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