मगध की असमिया आलोचना और हिन्दी

डॉ.हरेराम नाथ

डॉ. क ृष्ण नारायण प्रसाद मागध ने असम में 31 अक्टूबर 1970 मे गुवाहटी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में व्याख्याता के पद का कार्यभार ग्रहण किया। उनका भाषा सीखने के जिज्ञासु मन ने तत्क्षण असमिया साहित्य से परिचित होने की ओर प्रवृत्त हुआ। डॉ. भव प्रसाद चालिहा ने लिखा है कि प्रथम परिचय में ही डॉ. मगध ने क हा ‘मैं असमिया साहित्य-संस्क ृति के संदर्भ में विशेषत: शंक रदेव-माधवदेव कुछ अध्ययन क रना चाहता हूँ। इसमें आपको ग्रंथ वगैरह और अन्य प्रकार से भी सहायता क रनी होगी।1’ इस प्रकार डॉ. मगध का असमयिा भाषा साहित्य के प्रति सहज अनुराग स्पष्टï होता है, जो आगे चलक र अनेक पुस्तक और आलोचनात्मक निबन्ध लेखन के रूप में सामने आया। डॉ. चालिहा पुन: स्वीकार क रते हैं, ‘उन्होंने (डॉ. मागध ने) यह अनुभव किया कि असमी के जातीय जीवन में महापुरुष शंक रदेव और माधवदेव का अपरिसीम प्रभाव है, फिरभी इन दोनों महापुरुषों के बारे में असमेतर लोगों की जानकारी अत्यन्त सीमित है। वस्तुत: शंक रदेव-माधवदेव केवल असम के ही नहीं, बल्कि समस्त भारत के गौरव स्वरूप हैं। इसीलिए उन्होंने दोनों महापुरुषों की रचनावली खरीदक र उन्हें विस्तृत रूप में अध्ययन क रना प्रारंभ किया।2’

इसी क ्रम में डॉ. राधेश्याम तिवारी ने मन्तव्य को भी देखा जाएगा। उन्होंने लिखा है, ‘लौहित्य प्रदेश की माटी की माँग को देखते हुए हिन्दी भाषियों को असमिया संस्क ृति के मेरुदण्ड पुरुष श्रीमंत शंक रदेव पर विस्मृत अध्ययन क राने हेतु उन्होंने सूरदास और शंक रदेव के क ृष्ण काव्यों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तत किया। इसके फलस्वरूप उन्हें डी.लिट की उपाधि प्राप्त हुई।’
धीरे-धीरे डॉ. मागध असमिया साहित्य अध्ययन के प्रति जागरूक हो गए और हिन्दी के विद्वानों को असमिया साहित्य की निधि से परिचित क राने के प्रति क टिबद्घ हो गये। उनकी चिन्ता धारा को ध्यान में रखक र डॉ. भव प्रसाद चालिहा ने क हा है- ‘डॉ. मागध ने यह अनुभव किया था कि शंक रदेव-माधवदेव क ृत नाटको ं को ब्रजावली भाषा के कारण हिन्दी भाषी लोग आसानी से समझ सकेगे। उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि शंक रदेव-माधवदेव क ृत नाटक ही मध्यकालीन भारतीय भाषा में लिखित प्रथम नाटक का देवनागरी लिप्यन्तरण क र अलग-अलग से प्रकाशित क रवाया है।3’
शंक रदेव के नाटक और माधवदेव के नाटक देवनागरी लिपि में प्रकाशित क रा क र डॉ. मगध ने हिन्दी के पाठको ं का ध्यान मध्यकालीन हिन्दी नाटक लेखन की ओर आक ृष्टï किया। डॉ. धर्मदेव तिवारी ने उन पर (शंक रदेव-माधवदेव) एकाअधिपक शोधपरक निबंध लिखा, जो देश के विभिन्न, पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इसके बाद डॉ. मगध ने शंक रदेव : साहित्यकार और विचारक संज्ञक वृहत ग्रंथ की रचना की , जिसकी टंकित प्रति देखक र महामहिम स्व. महेंद्र मोहन चौधुरी, तत्कालीन राज्यपाल, पंजाब, चकित रह गये और उक्त ग्रंथ को प्रकाशित क राने का भार अपने ऊपर ले लिया, जिसे कालान्तर में पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से प्रकाशित क रवा क र और उसी विश्वविद्यालय के सभागार में उसका लोकार्पण समारोह आयोजित क रवाया, जिसमें डॉ. मागध के साथ डॉ. धर्मदेव तिवारी भी आमंत्रित हुए। इनके अतिरिक्त डॉ. भूपेंद्र नाथ राय चौधुरी, स्व. राजेश्वर प्रसाद सिंह आदि क ई लोग गुवाहटी से उक्त समारोह में सम्मिलित होने के लिए सोल्लास गये। उक्त महनीय ग्रंथ के आमुख में पंजाबी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. इंद्रजीत क ौर सन्धु ने लिखा है, ‘डॉ. क ृष्ण नारायण प्रसाद मागध सम्प्रति गुवाहटी विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक हैं। उन्होंने अथक परिश्रम क र प्रस्तुत ग्रंथ में श्री शंक रदेव के व्यक्तित्व और क ृतित्व के संबंध में यथासंभव, सामग्रियाँ संक लित की है। अपने बड़े ही सरल एवं बोधगम्य भाषा में श्रीशंक रदेव की रचनाओं और उनके दर्शन का विवेचन किया है। इस दिशा में, विशेषत: हिन्दी के क्षेत्र में डॉ. मगध का प्रयास सर्वप्रथम है और बौद्धिक तथा साहित्यिक दृष्टिïको ण से अति महत्वपूर्ण है।4’
प्रस्तुत क ृति पर परिचय स्वरूप लिखते हुए गुवाहटी विश्वविद्यालय के तत्कालीन रवीन्द्र नाथ ठाकुर अध्यापक डाक्टर सत्येंद्र नाथ शर्मा ने लिखा है- ‘आलोच्य क ृति ‘शंक रदेव : साहित्यकार और विचारक ’ गंभीर अध्ययन एवं शोध का फल है। शंक रदेव की समस्त रचनाओं के अतिरिक्त अध्येता ने इससे संबंधित अन्य महत्वपूर्ण आलोचना ग्रंथों का भी गहन अध्ययन क र अपने मौलिक दृष्टिïको ण का परिचय दिया है। ग्रंथ का एक महत्वपूर्ण पक्ष है साहित्य का विचार-विश्लेषण। महापुरुष के प्रत्येक ग्रंथ का क था-वस्तु-विश्लेषण, तात्विक विचार, गीतों का काव्यिक सौंदर्य, विभिन्न दृष्टिïको णों से विवेचित हुआ है। अधिक तर ग्रंथ पौराणिक क थाओं और वर्णनाओं पर आधारित होने पर भी महापुरुष का मौलिक चिंतन किस तरह अभिव्यक्त हुआ है, काव्य सौंदर्य का महिमा मंडित रूप किस प्रकार प्रतिफलित हुआ है, समाज को किस रूप में रूपायित किया गया है- इन समस्त विषयों को डॉ. मगध ने विस्तृत रूप से विवेचित किया है। इस ग्रंथ के प्रकाशन से महापुरुष शंक रदेव को भारतीय सांस्क ृतिक पृष्ठïभूमि में ‘स्वेह महिम्रि’ रूप में में प्रतिष्ठिïत क रने में सहायता मिलेगी, ऐसा विश्वास है। असम के धर्म, संस्क ृति, साहित्य और सामाजिक विषयों के संदर्भ में सर्व भारतीय अनुसंधित्सु पाठको ं को काफी सामग्री उपलब्ध होगी5’ इससे प्रस्तुत समीक्ष्य ग्रंथ की पूरी जानकारी मिल जाती है। इस पर उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान ने पुरस्कार देक र इसकी महत्ता पर मुहर लगा दी है।
प्रस्तुत आलोच्य ग्रंथ दस अध्यायों में विभक्त है, जो इस प्रकार है : 1. जीवन-चरित 2. रचनाएँ 3. काव्यरूप, 4. रचनाओं के कारक तत्व 5. दर्शन 6. भक्ति, 7. समाज-दर्शन 8. काव्य सौष्ठïव 9. नाटक , 10. समापन : व्यक्तित्व एवं महत्व
डॉ. धर्मदेव तिवारी ने क हा है - ‘आलोच्य ग्रंथ उपाधिपरक शोध ग्रंथ न होते हुए भी किसी भी गंभीर और महत्वपूर्ण शोध-ग्रंथ से क म नहीं है। असम में वैष्णव भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक श्रीमन्त शंक रदेव को इतनी समग्रता, विशदता और प्रामाणिक ता से उपस्थित क रने वाला यह प्रथम हिन्दी ग्रंथ तो हैं ही, इसी विषय पर हिन्दीतर भाषाओं में अद्यावधि लिखे गये ग्रंथों की तुलना में भी यह श्रेष्ठï हो गया है6’ वस्तुत: शंक रदेव अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण असमिया समाज के घर-घर में अति सम्मान के साथ विद्यमान हैं। वे अकेले सूर, तुलसी, क बीर का काम क रते हैं। डॉ. तिवारी ने प्रस्तुत ग्रंथ की महनीयता स्वीकार क रते हुए इसकी तुलना असमिया तथा अंग्रेजी में लिखे गये शंक रदेव विषयक ग्रंथों से की है और क हा है- ‘शंक रदेव विषयक हिन्दीतर ग्रंथों से प्रस्तुत ग्रंथ का मौलिक अंतर, जो पहिली नजर में पाठको ं को आक र्षित क रता है, यह है कि उनमें मूलत: शंक रदेव की जीवनी, भक्ति और दर्शन पर ही लेखको ं की दृष्टिï टिक ती रही है, उनके क वि क र्म पर उन ग्रंथों में प्राय: चलते ढंग से विचार किया गया है। इसके विपरित डॉ. मागध ने उन सभी विषयों पर शोधपूर्ण व्यवस्थित विवेचन तो किा ही है, शंक रदेव के काव्य सौष्ठï पर भी सूक्ष्मता , गंभीरता और विशदता से विचार क रते हुए ग्रंथ का सर्वांगपूर्ण बनाया है।7’
इसके अतिरिक्त डॉ. मागध ने माधवदेव : व्यक्तित्व और क ृतित्व तथा असम प्रांतीय राम साहित्य नामक ग्रंथों की भी रचना की है। उन पर भी थोड़ा सा विवेचन क र लेना असंगत नहीं होगा। जब तक शंक रदेव के बाद माधवदेव के क ृतित्व, दर्शन आदि पर विचार नहीं क र लिया जाता, तब तक असम की वैष्णव विचारधारा को सर्वांगीण रूप से समझा-बूझा नहीं जा सक ता। अत: माध्वदेव के व्यक्तित्व और उनकी विचारधारा पर विचार क रना श्रेयस्क र होगा।
वे एक ही साथ ‘धर्माचार्य, धर्मगुरु, धर्मोपदेशक , धर्मप्रचारक , अविष्कारक , समाज सुधारक , लोक नायक , योद्घा, क विन, नाटक कार, अभिनेता, गायक , नर्तक आदि गुणों से संपन्न माधवदेव अपने युग के साहित्यिक युगपुरुष थे। डॉ. मगध ने उनके व्यक्तित्व के संंबंध में जो आक ंलन किया है, वह सत्य है उनका क थन है-‘उनके (माधवदेव के) व्यक्तित्व में हिमालयी दृढ़ता, प्रशासनिक गंभीरता, अटूट आत्मविश्वास, अदम्य उत्साह, स्वावलम्बन, शीघ्र निर्णय क्षमता, संगठन पटुता, पर दुख कातरता इत्यादि का योग विकास हुआ था। 8’ इन्हीं गुणों के कारण डॉ. धर्मदेव तिवारी ने ठीक ही लिखा है,‘वस्तुत: शंक रदेव पर सर्वांगीण रूप से विचार-विमर्श तथा विश्लेषण क र लेने के बाद भी असमिया वैष्णव साहित्य तब तक रूरा ही रह जाता है,जब तक माधवदेव पर भी विचार न हो जाए। अत: इस ग्रंथ की पूर्व योजना अकारण नहीं क ही जाएगी। असमिया वैष्णव साहित्य के विविध पक्षों को उद्ïघाटित क रने की दृष्टिï से भी इस ग्रंथ की आवश्यक ता थी। 9’
माधवदेव न केवल शंक रदेव के उत्तराधिकारी शिष्य थे, बल्कि उन्होंने भक्ति प्रचारार्थ अनेक ग्रंथ लिखे। उन्होंने बालक क ृष्ण को नायक बनाक र नौ नाटको ं की रचना की , जिन्हें झुमुरा की श्रेणी में रखा जाएगा या क हा जाएगा । झुमुरा का स्वरूप लघु होता है । उसमें एक ही घटना का वर्णन होता है । नारी पात्रों का बाहुल्य रहता है । गीत-वाद्य-नृत्य से परिपूर्ण होता है । एक रस का निर्वाह होता है । अभिनय-संवाद सम्पन्न से आक र्षक होता है । डॉ. मागध ने उक्त आधारों को लेक र माधवदेव के समस्त झुमुरा का विवेचन-विश्लेषण किया है, जो हर दृष्टिï से महनीय है ।
माधवदेव की समस्त क ृतियाँ रामाश्रित तथा क ृष्णाश्रित क था पर आधारित हैं । उन्होंने रामायण के आदिकाण्ड का अनुवाद किया और जन्म रहस्य नामक काव्य लिखा, जो राम क थाश्रित हैं, इनके अतिरिक्त समस्त क ृतियाँ क ृष्णा चरिताश्रित हैं । डॉ. धर्मदेव तिवारी ने स्वीकार किया है - वस्तुत: माधवदेव का मुख्य वण्र्य है - भगवान की लीला । जिस प्रकार शंक रदेव की क ृतियों का साहित्यिक मूल्यांक न विशद रूप से किया गया है, उसी प्रकार माधवदेव की क ृतियों का भी साहित्यिक विश्लेषण हुआ है । 10 डॉ. मागध विषय प्रतिपादन की दृष्टिï से अति निपुण प्रतिपादक हैं । उनमें विवेचन की मौलिक ता, परीक्षण की अदï्भुत क्षमता, आलोचना की निरपेक्षता आदि गुण पाये जाते हैं । इसके साथ ही भाषा की सरलता, स्पष्टïता, तर्क शीलता के कारण उनकी क ृतियाँ महत्त्व की बन जाती हैं । गूढ़ से गूढ़ विषय को अत्यन्त सरल-सुबोध शैली में प्रस्तुत क रने की अपूर्व क्षमता मिली है । डॉ. मागध की असमिया साहित्य के प्रति जो जिज्ञासा है, वह अटूट है, क्योंकि माधवदेव पर स्वतंत्र ग्रंथ मागधजी के पहले किसी भी भाषा में नहीं लिखा गया था । ऐसी स्थिति में यत्र-तत्र से सामग्री लेक र इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ को तैयार क रना क ष्टï साध्य है, जो मागध जी के अतिरिक्त को ई नहीं क र सक ता था ।11
ऊपर विवेचित दो क ृतियोंं के प्रकाशन के पश्चात् डॉ. मागध का असमिया साहित्य जिज्ञासा-पिपासा शान्त नहीं हुई । अपनी शोधात्मक प्रवृत्ति के कारण डॉ. मागध ने असमिया साहित्य में रामाश्रित रचनाओं को खोजना आरंभ किया । इसके लिए उन्होंने काव्य-नाटक आदि रचनाओं को देखा-परखा है और असम प्रान्तीय राम साहित्य जैसी उपाधि विहीन ग्रंथ की रचना की है, जो विषय प्रतिपादन, चिन्तन, मनन, अनुशीलन, परीक्षण के आधार पर किसी भी उपाधिपरक शोध-ग्रंथ से ऊपर की गवेषणात्मक क ृति है ।12 इससे प्रस्तुत विवेच्य गं्रथ की महत्ता स्वत: सिद्घ हो जाती है । पुरोवाक में स्वयं लेखक ने स्वीकार किया है - वस्तुत: यह अपने विषय को समग्रता से प्रतिपादिक क रने वाली न केवल एक मात्र, बल्कि पहली क ृति है । जिसमें रामक था पर आधारित क ृतियों के असम प्रांतीय क ृतिकारों की परमार्थ, चेतना, काव्य-चेतना, और समाज-चेतना की त्रिवेणी का वस्तुन्मुखी, सम्यक ् और प्रामाणिक विश्लेषण किया गया है । 13 राम-क ृष्ण ने भारतीय जनमानस को सर्वाधिक आन्दोलित किया है और अपने कार्यक लाप से उसे दिशा-निर्देश किया है । फलत: हमारे साहित्यकारों का ध्यान उनके चरित के ऊपर जाना और उनसे सम्बद्घ विभिन्न विधाओं में रचना क रना असंगत नहीं माना जाएगा । भारत के विभिन्न अंचलों के साहित्यकारों, चित्रकारों, क लाप्रेमियों, मूर्तिकारों का ध्यान उक्त आदर्श पुरुषों के चरित गाथा पर गया है । इसी परिपे्रक्ष्य में असम के साहित्यकार आदि को देखा जाएगा। असम के साहित्यकारों के अतिरिक्त मूर्तिक ला, चित्रक ला के क लाकारों ने उक्त दोनों आदर्श पुरुषों को रूपायित किया है । डॉ. मागध का अध्ययनीय विषय था, राम । अत: उन्होंने अपने अध्ययन-चिन्तन को राम तक सीमित रखा । असमिया साहित्यकारों ने रामाख्यान के आधार पर काव्य तथा नाटक की रचना की है । डॉ. तिवारी के अनुसार चौबीस साहित्यकारों ने रामक था को आधार बनाक र काव्य को और छियासठ नाटक कारों ने नाटक की रचना की है । 14 जिसका अतिसूक्ष्मता के साथ विद्वान लेखक ने विवेचन किया है ।
असमिया साहित्य, साहित्येत्तर, मौलिक तथा अनूदित समस्त क ृतियों में वर्णित-चित्रित रामक था का विवेचन विवेच्य क ृति में किया गया तो है ही, इसके अतिरिक्त कारबी और खामति भाषाओं में लिखित रामायण पर भी विद्वान लेखक का ध्यान गया है और उस पर अपना मन्तव्य दिया है । डॉ. तिवारी का क थन है - डॉ. मागध हिन्दी के पहले विद्वान हैं, जिन्होंने कारबी रामायण और खामति रामायण पर अपनी लेखनी चलायी है और हिन्दी जगत को इन ग्रंथों से सामान्य परिचय क राया है।
इन ग्रंथों के अतिरिक्त डॉ. मागध ने अतिमहत्वपूर्ण शोधपरक लेख असमिया साहित्य से सम्बद्ध लिखा है, जिनमें से कुछ के नाम हैं- शंक रदेव के गीत-संगीत, उमापति आरु शंक रदेवर पारिजातहरण, हाजारिकार दृष्टिïभंगीत शिवाजी, शिवाजी असमिया साहित्य में, हिन्दी के विकास में असमी भाषियों का योगदान, शंक रदेव की हिन्दी रचनाएँ, बरगीत, शंक रदेवर लालित्य उद्भव, शंक रदेवर काव्यरूप, नवकान्त बरुआर काव्य-सिद्धान्त, असमिया साहित्य में हास्य रस, असमिया क विता इत्यादि ।
इस प्रकार हम स्वीकार क रेंगे कि डॉ. मागध ने असमिया साहित्य को असम से बाहर के विद्वानों के समक्ष उपस्थित क रने वालों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण विद्वान हैं ।
संदर्भ -
1. डॉ. भवप्रसाद चालिहा, असम हितैषी डॉ. क ृष्ण नारायण प्रसाद मागध-संस्क ृति साधक ।
2. डॉ. राधेश्याम तिवारी, मेरे शिक्षक प्रोफेसर मागधजी, प्रो. क ृष्ण नारायण प्रसाद मागध, पृ., 68
3. डॉ. भवप्रसाद चालिहा, असम हितैषी डॉ. क ृष्ण नारायण प्रसाद मागध, संस्क ृति साधक डॉ. क ृष्ण नारायण प्रसाद मागध, पृ. 69
4. डॉ. इन्द्रजीत क ौर सन्धु, शंक रदेव : साहित्यकार और विचारक , आमुख
5. डॉ. सत्येन्दर नाथ शर्मा, शंक रदेव : साहित्यकार और विचारक , परिचय
6. डॉ. धर्मदेव तिवारी संस्क ृति साधक डॉ. क ृष्ण नारायण प्रसाद मागध-रचना संसार-पृ. 76
7. वही, पृ. 77
8. डॉ. क ृष्ण नारायण प्रसाद मागध, माधवदेव : व्यक्तित्व और क ृत्तित्व, पृ. 236
9. वही, पृ. 237
10. डॉ. धर्मदेव तिवारी, डॉ. मागध जी की रचनाएँ : परिक ्रमा, पृ. 85
11. वही, पृ. 86
12. डॉ. धर्मदेव तिवारी,, डॉ. मागध की रचनाएँ : परिक ्रमा, पृ. 87
13. डॉ. क ृ.ना.प्र. मागध, असम प्रान्तीय राम साहित्य, पुरोवाक , पृ.6
14. डॉ. धर्मदेव तिवारी, डॉ. मागध की रचनाएँ : परिक ्रमा, पृ. 89

द्य हरेराम नाथ
द्वारा - डॉ. धर्मदेव तिवारी
सुखदेव भवन, ए.टी. रोड,
गुवाहाटी-781001

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